(Please let the pics open. It may take some time on a slower connection)
अपने उसूल यूं भी तोडने पडे...खता उसकी थी हाथ मुझे जोडने पडे ..तलब मौत की करना गुनाह है ज़माने में यारो,मरने का शौक है तो मुहब्बत क्यों नहीं करते…कितनी मासूम सी है ,तमन्ना आज मेरी, कि ..नाम अपना ,तेरी आवाज़ से सुनूँ..!!मौत से क्या डर "मिनटों" का "खेल" है"आफत" तो "ज़िन्दगी" है "बरसों" चला करती है.मैं तो शायरी सुना के अकेला खड़ा रहा,सब अपने अपने चाहने वालो मे खो गये ॥अब इस से भी बढ़कर गुनाह-ए-आशिकी क्या होगी,जब रिहाई का वक्त आया..तो पिंजरे से मोहब्बत हो चुकी थी।बिछड के इक दूजे से,हम कितने रंगीले हो गए...मेरी आँखे लाल हो गई उनके हाथ पीले हो गए...